Meteors meaning in Hindi – उल्का और उल्कापिंड क्या हैं? आकाश में दिखने वाली इन चमकदार वस्तुओं के बारे में रोचक जानकारी प्राप्त करें।
Meteors meaning in Hindi- आकाशीय पिंड
आकाश में कभी-कभी आप जलते हुए रोशनी के साथ एक गिरते हुए गोले जैसा दृश्य देखते हैं। ये उल्का होते हैं। जब ये उल्का जलते हुए रूप में नीचे आकर पृथ्वी तक पहुंच जाते हैं, तब इन्हें उल्कापिंड कहा जाता है।
साधारण भाषा में इन्हें “टूटते हुए तारे” या “लूका” भी कहा जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से इन उल्कापिंडों का महत्व बहुत अधिक है। ये अत्यंत दुर्लभ होते हैं और ब्रह्माण्डविज्ञान एवं भूविज्ञान के बीच एक महत्वपूर्ण संपर्क स्थापित करते हैं।
उल्का का अर्थ और परिचय
आकाश से कभी-कभी आप जलती हुई रोशनी के साथ एक गिरते हुए गोले को देख सकते हैं। ये उल्काएँ होती हैं। जब ये पृथ्वी पर गिरती हैं, तो उन्हें उल्का पिण्ड कहते हैं। लोग उन्हें ‘टूटते हुए तारे’ या ‘लूका’ भी कहते हैं।
आकाश से गिरते हुए जलते पिंडों की व्याख्या
हर रात, उल्काएँ अनगिनत संख्या में दिखाई देती हैं। लेकिन, जो पृथ्वी पर गिरते हैं, उनकी संख्या बहुत कम होती है।
हर साल, हजारों मेटोरियॉइड पृथ्वी पर फंसे हुए हैं। जब वे यात्रा करते हैं, तो वे जल जाते हैं।
उल्कापिंड को अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ ने परिभाषित किया है। यह एक आकार का ठोस प्राकृतिक वस्तु है। इसका आकार 30 माइक्रोमीटर से 1 मीटर तक हो सकता है।
उल्कापिंड की आयामों की सीमाएं नहीं हैं। इसलिए, इसे “मोटे तौर पर” जाना जाता है।
उल्कापिंडों को शूटिंग या गिरते सितारों के रूप में भी जाना जाता है। वे आकाश में एक स्थान से आ रहे होते हैं।
1954 में सिल्काउगा में एक महिला को अपने घर की छत पर 20 किलो की चट्टान गिरने से घायल होने की घटना हुई थी।
उल्कापिंडों का संक्षिप्त इतिहास
प्राचीन समय से ही, मनुष्य आकाशीय पिंडों के बारे में जानते थे। लेकिन, आधुनिक विज्ञान के विकास के साथ, यह विश्वास करना कठिन था।
18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, इटली में अल्बारेतो स्थान पर, दार्शनिक डी. ट्रौयली ने एक उल्कापिंड का वर्णन किया। उन्होंने सोचा कि यह खमंडल से टूटा हुआ तारा हो सकता है। लेकिन, उस समय कोई ध्यान नहीं दिया गया।
सन् 1768 ई. में, फादर बासिले ने फ्रांस में लूस नामक स्थान पर एक उल्कापिंड को पृथ्वी पर आते हुए देखा। अगले वर्ष, उसने पेरिस की विज्ञान की रायल अकैडमी में इस वृत्तांत पर एक लेख पढ़ा।
इस प्रकार, आकाशीय पिंड या मिटिअर का अस्तित्व और उनका पृथ्वी पर गिरना वैज्ञानिकों के ध्यान में आया। उल्कापिंडों के इतिहास का अध्ययन शुरू हुआ।
उल्कापिंडों का वर्गीकरण
उल्कापिंडों को उनके संगठन के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। कुछ उल्कापिंड लोहे, निकल या मिश्रधातुओं से बने होते हैं। दूसरी ओर, कुछ सिलिकेट खनिजों से बने पत्थर सदृश होते हैं।
पहले वर्ग को धात्विक उल्कापिंड और दूसरे को आश्मिक उल्कापिंड कहा जाता है।
कुछ उल्कापिंडों में दोनों धात्विक और आश्मिक पदार्थ समान मात्रा में होते हैं। इन्हें धात्वाश्मिक उल्कापिंड कहा जाता है।
धात्विक, आश्मिक और धात्वाश्मिक श्रेणियाँ
उल्कापिंडों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
श्रेणी | विशेषता |
---|---|
धात्विक उल्कापिंड | लोहे, निकल या मिश्रधातुओं से बने होते हैं। |
आश्मिक उल्कापिंड | सिलिकेट खनिजों से बने पत्थर सदृश होते हैं। |
धात्वाश्मिक उल्कापिंड | धात्विक और आश्मिक पदार्थों की समान मात्रा में पाए जाते हैं। |
उल्कापिंडों का वर्गीकरण उनकी संरचना और विशेषताओं पर आधारित है। यह उनके अध्ययन और समझ को बढ़ाता है।
उल्कापिंडों की संरचना
उल्कापिंड या मिटिअर का अर्थ है आकाशीय पिंड। उनकी संरचना बहुत जटिल होती है। धातु और पत्थरों के आधार पर वे वर्गीकृत किए जाते हैं।
लेकिन, उनके अंदर के रासायनिक तत्वों के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है।
उल्कापिंडों को तीन मुख्य वर्गों में बांटा जा सकता है। प्रत्येक वर्ग में अलग-अलग खनिज होते हैं। एस्टेरॉइड 16 साइके में बहुत सारा धातु होता है। इसकी कीमत बहुत अधिक होती है।
वर्गीकरण आधार | उल्कापिंड श्रेणी | उल्कापिंड का विवरण |
---|---|---|
धात्विक | लोहा-निकल उल्कापिंड | लोहे और निकल की भारी मात्रा वाले पिंड |
आश्मिक | काबोनेशियस छंद्रक उल्कापिंड | कार्बन युक्त गैर-धातविक सघन पिंड |
धात्वाश्मिक | काबोनेशियस-क्रोमाइट मिश्रित उल्कापिंड | कार्बन और क्रोमाइट से मिश्रित पिंड |
इन वर्गों के अलावा, उल्कापिंड की कीमत कई चीजों पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया में गिरने वाले एक उल्कापिंड को CM1/2 काबोनेशियस छंद्रक के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसकी कीमत सोने से भी अधिक है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि कक्षीय बलों के कारण क्षुद्रग्रह एक-दूसरे से टकराते रहते हैं। वे छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाते हैं।
इन पिंडों को अक्सर बास्केटबाल के आकार में देखा जाता है। वे सौर मंडल में हजारों किलोमीटर की दूरी पर घूमते रहते हैं।
उल्कापिंडों में पाए जाने वाले रासायनिक तत्व
अब तक, उल्कापिंडों में 52 रासायनिक तत्व पाए गए हैं। इनमें से आठ तत्व बहुत आम हैं। सबसे प्रमुख तत्व हालों है।
इसके अलावा, सात अन्य तत्व भी आम हैं। ये हैं ऑक्सिजन, सिलिकन, मैंगनीशियम, गंधक, ऐल्युमिनियम, निकल और कैल्सियम।
प्रमुख और अल्प मात्रा में पाए जाने वाले तत्व
इसके बाद, 20 अन्य तत्व भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। लेकिन, 24 तत्व बहुत कम मात्रा में होते हैं। मिटिअर का हिंदी अर्थ, धूमकेतु, आकाशगंगा, खगोलीय वस्तु, उल्का, और उल्कापात के साथ जुड़े ये तत्व उल्कापिंडों की संरचना को दर्शाते हैं।
तत्व | मात्रा |
---|---|
हालों | प्रचुर |
ऑक्सीजन | प्रचुर |
सिलिकन | प्रचुर |
मैंगनीज़ | प्रचुर |
गंधक | प्रचुर |
ऐल्युमिनियम | प्रचुर |
निकल | प्रचुर |
कैल्शियम | प्रचुर |
इन तत्वों का अध्ययन उल्कापिंडों के बारे में जानकारी देता है। यह वैज्ञानिकों को बहुत मदद करता है।
“उल्कापिंड जिसमें पानी पाया गया था, उसका पृथ्वी के पानी से मिलता-जुलता रहा। यह उल्कापिंड पृथ्वी पर आए पानी के उद्गम के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान कर सकता है।”
उल्कापिंडों की खनिज संरचना
उल्कापिंड और पृथ्वी की शैलों में खनिज संरचना में बड़ा अंतर है। भूमंडलीय शैल राशियों में लोहा और निकल दुर्लभ होते हैं। लेकिन, उल्कापिंड़ों में ये धातुएँ बहुतायत से पाए जाते हैं।
भूमि पर 50,000 से अधिक उल्कापिंड पाए गए हैं। ये तीन समूहों में आते हैं: लौह उल्कापिंड, पथरीले उल्कापिंड, और पत्थर-लोहे के उल्कापिंड। इनमें चुंबकीय धातु होती है, इसलिए वे चुंबकीयता में अधिक होते हैं।
विभिन्न देशों ने उल्कापिंड संग्रहण के लिए कानून बनाए हैं। ऑस्ट्रेलिया में संग्रहालयों की मान्यता है। कनाडा में भूमि मालिक के हक का समर्थन है। भारत में एयरोलाइट फॉल्स के लिए कानून हैं।
उल्कापिंडों की खनिज संरचना पृथ्वी से बहुत अलग है। ये विलक्षण खनिजों से भरपूर होते हैं और चुंबकीय गुणों से युक्त हैं।
Meteors meaning in Hindi- आकाशीय पिंड
मानव जाति “टूटते हुए तारों” या “उल्का” से प्राचीन काल से जुड़ी है। ये उल्कापिंड आकाश से गिरकर जलते हुए पृथ्वी पर आते हैं। उल्कापिंडों का वैज्ञानिक महत्व बहुत अधिक है। वे ब्रह्माण्डविज्ञान एवं भूविज्ञान के बीच एक महत्वपूर्ण संपर्क स्थापित करते हैं।
इन्हें सामान्य भाषा में “टूटते हुए तारे” या “लूका” कहा जाता है। वे वास्तव में आकाशगंगा में घूमते हुए छोटे पिंड या टुकड़े हैं। उल्कापात के मामले में, बहुत कम पिंड वास्तव में पृथ्वी की सतह तक पहुंचते हैं।
“मिटिअर का हिंदी अर्थ ‘आकाशीय पिंड’ है, जो आकाश में घूमते हुए और गिरते हुए नजर आते हैं।”
उल्कापिंड के अध्ययन का महत्व बहुत है। ये दुर्लभ खगोलीय वस्तुएं ब्रह्माण्ड और पृथ्वी के बीच महत्वपूर्ण संपर्क स्थापित करती हैं। इनका अध्ययन भूविज्ञान और खगोलविज्ञान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
उल्कापिंडों की उत्पत्ति पर विचार
उल्कापिंडों की उत्पत्ति का विषय बहुत विवादास्पद है। आधुनिक विज्ञान के विकास के साथ, मनुष्य को यह विश्वास करने में समय लगा। भूतल पर पाए जाने वाले ये पिंड पृथ्वी पर आकाश से आए हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि ये पिंड पृथ्वी की सतह से बाहर से, अंतरिक्षी ब्रह्मांड से आए हैं।
पृथ्वी से बाहर से आए पिंड
उल्कापिंडों में केवल 52 रासायनिक तत्व प्रमाणित किए गए हैं, जिनमें से आठ तत्व बहुत आम हैं। इनमें हालों, ऑक्सीजन, सिलिकन, मैंगनीशियम, गंधक, ऐल्युमिनियम, निकल और कैल्सियम शामिल हैं। धात्विक और आश्मिक उल्कापिंडों का मुख्य वर्गीकरण उनके संगठन के आधार पर किया जाता है। उल्कापिंडों में भूमंडलीय शैलों से अलग राशियां पाए जाते हैं।
1908 में, एक छोटा उल्कापिंड सिबिरिया में टकराया, जिससे एक बड़ा धूमकेतु बना। यह धूमकेतु 80 मिलियन से अधिक पेड़ों को नष्ट कर दिया। हाल ही में, 2018 LA नामक एक नया उल्कापिंड बोत्स्वाना के जंगलों में गिरा, जो वैज्ञानिकों की सटीक भविष्यवाणी क्षमताओं को दर्शाता है। एटलस प्रणाली खतरनाक क्षुद्रग्रहों का पता लगा सकती है। नासा और अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ की क्षुद्रग्रह केंद्र जैसी संस्थाएं इस जानकारी का उपयोग करती हैं। एटलस प्रणाली ने हजारों क्षुद्रग्रहों का पता लगाया है।
2018 LA उल्कापिंड को खोजने में वैज्ञानिकों को एक रात में 1000 हजार से अधिक टुकड़ों का अवलोकन करने में मदद मिली। सतर्कता प्रणालियों का उपयोग क्षुद्रग्रहों या छोटे उल्कापिंडों द्वारा होने वाली मानवीय हानि और संभावित आपदाओं को रोकने में प्रभावी साबित होगा।
भूमंडलीय शैलों और उल्कापिंडों में अंतर
मिटिअर का हिंदी अर्थ और उल्कापिंडों की खनिज संरचना में अंतर हैं। पृथ्वी पर पाई जाने वाली शैल राशियों में लोहा और निकल कम होते हैं। लेकिन, धूमकेतु और आकाशगंगा से आए उल्कापिंडों में ये धातुएं अधिक होती हैं।
उल्कापिंडों में कई खनिज पदार्थ भी होते हैं जो पृथ्वी की शैलों में नहीं होते। इन अंतरों को समझना वैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण है। उल्कापात घटनाएं पृथ्वी के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
विशेषताएं | भूमंडलीय शैल | उल्कापिंड |
---|---|---|
लोहा व निकल की मात्रा | कम | अधिक |
अन्य खनिज तत्वों की उपस्थिति | सीमित | विविधता |
रासायनिक संरचना | जटिल | सरल |
उत्पत्ति स्रोत | पृथ्वी | अंतरिक्ष |
उल्कापिंड पृथ्वी के बाहर से आते हैं। भूमंडलीय शैलें पृथ्वी का हिस्सा हैं। इन अंतरों का अध्ययन हमें ग्रह और अंतरिक्ष के बारे में जानकारी देता है।
उल्कापिंडों की उत्पत्ति का विषय
मिटिअर का हिंदी अर्थ उल्का या धूमकेतु है। उल्कापिंडों की उत्पत्ति का विषय बहुत विवादास्पद है। आधुनिक विज्ञान के विकास के साथ, हमें पता चला है कि ये पिंड आकाशगंगा से धरती पर गिरते हैं।
उल्कापात से कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुई हैं। ये घटनाएं धरती के इतिहास और विकास को प्रभावित कर चुकी हैं।
एक विशाल उल्का लगभग 3.2 अरब साल पहले धरती से टकराया था। यह टक्कर एक 500 किमी व्यास वाला क्रेटर बना दिया था। इस उल्का का आकार माउंट एवरेस्ट से चार गुना बड़ा था।
इस टक्कर ने समुद्र को उबाल दिया और प्राचीन जीवन को प्रेरित किया। यह उल्का लगभग 40-60 किमी चौड़ा था। यह डाइनासोर विलुप्ति के लिए जिम्मेदार उल्के से बड़ा था।
वैज्ञानिकों ने पाया कि इस उल्का के प्रभाव से फॉस्फोरस और लोहा मुक्त हुए। ये तत्व सरल जीवन रूपों के विकास के लिए आवश्यक थे।
जीवन ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद तेजी से अनुकूलित और विकसित हुआ। इस प्रकार, उल्कापातों ने पृथ्वी के इतिहास और वातावरण को गहराई से प्रभावित किया है।