meaning of asteroids in hindi: 2024 आकाशीय पिंड

क्षुद्रग्रह क्या हैं और उनका महत्व क्या है? जानें meaning of asteroids in hindi में। आकाशीय पिंडों के बारे में रोचक तथ्य और वैज्ञानिक जानकारी यहां पढ़ें।

meaning of asteroids in hindi: आकाशीय पिंड

क्षुद्रग्रह या धुंधलिका ब्रह्माण्ड में विचरण करने वाले खगोलीय पिंड हैं। ये ग्रहों से छोटे और उल्का पिंडों से बड़े होते हैं। 1819 में ग्यूसेप पियाज़ी ने पहला क्षुद्रग्रह ‘सेरेस’ की खोज की थी।

इसके बाद अन्य क्षुद्रग्रहों की खोज भी की गई। ‘क्षुद्रग्रह’ और ‘ग्रह’ शब्दों का उपयोग पिछले दो शताब्दियों में एस्टरॉयड की खोज में सुधार के साथ किया जाने लगा है।

क्षुद्रग्रह क्या है?

क्षुद्रग्रह या धुंधलिका एक छोटा खगोलीय पिंड है। यह ग्रहों से छोटा और उल्का पिंडों से बड़ा होता है। ये पिंड सौर प्रणाली के निर्माण के समय बने हैं।

इनकी स्थिति मंगल और बृहस्पति के बीच होती है। क्षुद्रग्रहों के आकार और संरचना में विविधता पाई जाती है। ये ग्रहों से छोटे और धूमकेतुओं से बड़े होते हैं।

क्षुद्रग्रह के अर्थ और परिभाषा

धुंधलिका शब्द छोटे आकार के खगोलीय पिंड के लिए उपयोग किया जाता है। ये पिंड सौर प्रणाली के निर्माण के समय बने हैं।

इन्हें मंगल और बृहस्पति के बीच पाया जाता है। धुंधलिकाओं के आकार और संरचना में विविधता पाई जाती है।

क्षुद्रग्रह और ग्रहों में अंतर

क्षुद्रग्रह या धुंधलिका ग्रहों से छोटे होते हैं। ये उल्का पिंडों से बड़े होते हैं।

ग्रह बड़े आकार के होते हैं और सूर्य के चारों ओर पूर्ण कक्षा में परिक्रमण करते हैं। धुंधलिका या क्षुद्रग्रह छोटे आकार के होते हैं और सूर्य के चारों ओर आंशिक कक्षा में परिक्रमण करते हैं।

“क्षुद्रग्रह या धुंधलिका वह खगोलीय पिंड है जो ग्रहों से छोटा और उल्का पिंडों से बड़ा होता है।”

क्षुद्रग्रहों की खोज का इतिहास

क्षुद्रग्रहों की खोज का इतिहास बहुत पुराना है। पहला क्षुद्रग्रह सेरेस 1819 में इतालवी खगोलविद ग्यूसेप पियाज़ी ने खोजा था। इसके बाद अन्य क्षुद्रग्रह भी खोजे गए।

18वीं शताब्दी के अंत में बैरन फ्रांज एक्सवेर वॉन जैच ने 24 खगोलविदों का समूह बनाया था। 1891 में मैक्स वुल्फ ने ‘आस्ट्रोफ़ोटोग्राफी’ का उपयोग करके क्षुद्रग्रहों का पता लगाना शुरू किया। इससे पहचान की दर में बड़ी वृद्धि हुई।

नासा के अनुसार, 994,383 धुंधलिका हैं। ये 4.6 अरब वर्ष पूर्व सौरमंडल के गठन से हैं। इनका वर्गीकरण तीन प्रकारों में किया जाता है: मुख्य क्षुद्रग्रह पेटी, ट्रोज़न और नियर-अर्थएस्टेरॉइड्स।

“क्षुद्रग्रहों की खोज में प्रगति के साथ, हम इन प्राचीन वस्तुओं के बारे में और अधिक जानने में सक्षम हो गए हैं।”

धुंधलिका की खोज का इतिहास

अब, क्षुद्रग्रहों का अध्ययन गहराई से किया जा रहा है। नासा द्वारा प्रक्षेपित ‘DART’ और ‘हेरा’ जैसे मिशन इन प्राचीन वस्तुओं पर और अधिक जानकारी प्राप्त करने में मदद करेंगे।

क्षुद्रग्रह के प्रकार

क्षुद्रग्रहों को उनके स्पेक्ट्रम के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। तीन मुख्य प्रकार हैं – सी-प्रकार (कार्बन-समृद्ध), एम-प्रकार (धातु) और एस-प्रकार (सिलिकेट या पत्थर)। धुंधलिका के प्रकार, जैसे सी-प्रकार, एम-प्रकार और एस-प्रकार, विविध हैं। कुछ क्षुद्रग्रह 1000 किमी तक बड़े हो सकते हैं।

सी-प्रकार, एम-प्रकार और एस-प्रकार क्षुद्रग्रह

सी-प्रकार के क्षुद्रग्रह कार्बन से भरे होते हैं और काले या गहरे भूरे रंग के होते हैं। इनमें अधिक लोहा और निकेल होता है। एम-प्रकार के क्षुद्रग्रह धातु से बने होते हैं और लोहा और निकेल का मिश्रण होता है। एस-प्रकार के क्षुद्रग्रह सिलिकेट या पत्थर से भरे होते हैं और अधिक मात्रा में होते हैं।

“क्षुद्रग्रहों का वर्गीकरण उनके स्पेक्ट्रम के आधार पर किया जाता है।”

इन धुंधलिका के प्रकार के अलावा, क्षुद्रग्रहों का आकार भी बहुत भिन्न होता है। कुछ 1000 किमी तक बड़े हो सकते हैं। यह जानकारी उनके गठन और संरचना को समझने में मदद करती है।

धुंधलिका के प्रकार

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धुंधलिका या क्षुद्रग्रह, ब्रह्माण्ड में छोटे खगोलीय पिंड हैं। ये ग्रहों से छोटे और उल्का पिंडों से बड़े होते हैं। इन्हें ‘अप्रधान ग्रह’ या ‘ऐस्टरौएड’ भी कहा जाता है।

इन्हें सौर प्रणाली के निर्माण काल में बनाया गया चट्टानी पिंड माना जाता है।

धुंधलिकाओं का आकार बहुत भिन्न होता है। सबसे बड़ी धुंधलिका सिरस का व्यास 940 किलोमीटर है। सबसे छोटी केवल 6 फुट का व्यास रखती है।

सौर मंडल में कई मिलियन धुंधलिकाएं हैं। उनका व्यास कई मीलों या कुछ फुट तक हो सकता है।

धुंधलिका का आकार उदाहरण
सबसे बड़ा सिरस (940 किलोमीटर)
सबसे छोटा 6 फुट

धुंधलिकाएं भिन्न प्रकार की भौतिक विशेषताओं से युक्त होती हैं। कुछ पूर्णतः ठोस होती हैं, जबकि कुछ में गैस और धूल का मिश्रण होता है।

कुछ अनियमित आकार की होती हैं, जबकि कुछ गोल आकार की होती हैं। कुछ धुंधलिकाओं के अपने छोटे चंद्रमा भी होते हैं।

कुछ अन्य ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण उनके चंद्रमा बन जाते हैं। कुछ धुंधलिकाएं धरती के ऊपर से टकरा भी सकती हैं।

“धुंधलिका अंतरिक्ष में विचरण करने वाले छोटे खगोलीय पिंड हैं, जो ग्रहों से छोटे और उल्का पिंडों से बड़े होते हैं।”

धुंधलिका

वैज्ञानिकों के अनुसार, धुंधलिकाएं सौर प्रणाली में व्यापक क्षेत्र में सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तक विचरण करती हैं। वे कुछ जटिल भौतिक गुणों के कारण वैज्ञानिकों के बीच चर्चा का विषय बनते रहते हैं।2024 meaning of asteroids in hindi

क्षुद्रग्रहों के आकार और संरचना

क्षुद्रग्रहों के आकार और संरचना में बहुत विविधता है। लगभग 100,000 क्षुद्रग्रह हैं, लेकिन अधिकांश बहुत छोटे हैं। वे पृथ्वी से दिखाई नहीं देते।

कुछ क्षुद्रग्रह सौर मंडल के बाहरी हिस्सों में हैं। इन्हें सेन्टारस कहा जाता है।

अधिकांश क्षुद्रग्रह पृथ्वी जैसे पत्थरों से बने हैं। उल्काओं में सीलीकेट, लोहे और निकेल का भी होता है।

कुछ प्रसिद्ध क्षुद्रग्रहों में वेस्टा, टाउटेटीस, कैस्टेलिया, जीओग्राफोस शामिल हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार, C वर्ग में 75%, S वर्ग में 17%, और M वर्ग में बचे हुए क्षुद्रग्रह हैं।

मुख्य क्षुद्रग्रहों के बीच के क्षुद्रग्रहों में उपवर्ग भी हैं। जैसे हंगेरीयास, एओस, थेमीस, सायबेलेस और हिल्डास

धुंधलिका की संरचना

कुछ उल्लेखनीय क्षुद्रग्रह हैं: एटेन, आमुन, आईकेरस, एरास, वेस्टा, पलास, जुनो, हायगीआ, आगामेनॉन, शीरान आदि।

अब तक हज़ारों क्षुद्रग्रह देखे गए हैं। उन्हें वर्गीकृत किया गया है।

क्षुद्रग्रह प्रकार अनुमानित प्रतिशत
C-प्रकार 75%
S-प्रकार 17%
M-प्रकार

क्षुद्रग्रह कहाँ पाए जाते हैं?

सौर मंडल में क्षुद्रग्रह या धुंधलिका अधिकतर मंगल और बृहस्पति के बीच ही पाए जाते हैं। इस क्षेत्र को ‘धुंधलिका बेल्ट’ कहा जाता है। यहाँ लाखों क्षुद्रग्रह हैं, जो सौर नेब्यूला के भीतर घूमते हैं।

धुंधलिका बेल्ट

धुंधलिका बेल्ट मंगल और बृहस्पति के बीच है। यह क्षेत्र लगभग 2.2 से 3.2 एक्स्ट्रा युनिट्स (एयू) तक फैला है। इसमें लाखों छोटे-बड़े क्षुद्रग्रह हैं, जो सूर्य के चारों ओर कक्षाएं बनाते हैं।

बृहस्पति के सह-कक्षीय क्षुद्रग्रह

बृहस्पति के चारों ओर भी कुछ क्षुद्रग्रह हैं। वे बृहस्पति के ‘सह-कक्षीय’ क्षुद्रग्रह कहलाते हैं। ये क्षुद्रग्रह बृहस्पति के साथ-साथ सूर्य के चारों ओर घूमते हैं।

क्षुद्रग्रह और धूमकेतुओं में अंतर

क्षुद्रग्रह और धूमकेतुओं के बीच एक बड़ा अंतर है। क्षुद्रग्रह खनिज और चट्टान से बने होते हैं। दूसरी ओर, धूमकेतु धूल और बर्फ से बने होते हैं।

इन दोनों के निर्माण में यह अंतर बहुत महत्वपूर्ण है।

क्षुद्रग्रह सूरज के करीब होते हैं, जो धूमकेतुओं के विकास को रोकता है। इसलिए, धूमकेतु सूरज से दूर रहते हैं।

यह अंतर इन्हें अलग-अलग गतिविधियों में लेता है।

इसके अलावा, धुंधलिका और धूमकेतु में अंतर है। धुंधलिकाएं सूरज के करीब होती हैं, जबकि धूमकेतु दूर होते हैं।

धुंधलिका और धूमकेतु में अंतर

क्षुद्रग्रह और धूमकेतुओं के बीच अंतर संरचना और स्थिति में है। यह उनके गठन और गतिविधि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। धुंधलिका और धूमकेतु की तुलना भी इन्हें समझने में मदद करती है। new meaning of asteroids in hindi

क्षुद्रग्रह और उल्कापिंडों में अंतर

धुंधलिका और उल्कापिंडों का सबसे बड़ा अंतर उनका आकार है। उल्कापिंड छोटे होते हैं, उनका व्यास एक मीटर से कम है। लेकिन, क्षुद्रग्रह बड़े होते हैं, उनका व्यास एक मीटर से अधिक होता है।

उल्कापिंड चट्टानी, धातु, या दोनों का मिश्रण हो सकता है। लेकिन, क्षुद्रग्रह मुख्य रूप से खनिज और चट्टान से बने होते हैं।

हर रात, उल्काएँ अनगिनत संख्या में दिखाई देती हैं। लेकिन, पृथ्वी पर गिरने वाले पिंड बहुत कम होते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार, उल्कापिंडों में सामान्य धातु और आश्मिक पदार्थ अधिक होते हैं। लेकिन, फ़ेल्सपार का अभाव होता है। उल्कापिंडों में केवल 52 रासायनिक तत्व पाए जाते हैं।

फ्रांसीसी एकेडमी ने उल्कापिंडों की जांच की। उन्होंने पाया कि ये वास्तव में खमंडल से आते हैं।

उल्कापिंडों को उनकी संरचना के आधार पर विभिन्न वर्गों में बांटा जाता है।

क्षुद्रग्रह मुख्य रूप से मंगल और बृहस्पति के बीच सौर मंडल में पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि उनका व्यास सैकड़ों किलोमीटर तक हो सकता है।

मापदंड क्षुद्रग्रह उल्कापिंड
व्यास 1 मीटर से अधिक 1 मीटर से कम
संरचना खनिज और चट्टान चट्टानी, धातुमय या मिश्रित
उपस्थिति मंगल और बृहस्पति के मध्य अनगिनत संख्या में पाए जाते हैं
रासायनिक तत्व 52 से अधिक 52 से कम

इस प्रकार, धुंधलिका और उल्कापिंड में अंतर स्पष्ट है। क्षुद्रग्रह बड़े और खनिज से बने होते हैं। उल्कापिंड छोटे और विभिन्न संरचनाओं वाले होते हैं।

क्षुद्रग्रह केवल एक निश्चित क्षेत्र में ही पाए जाते हैं। लेकिन, उल्कापिंड अनगिनत संख्या में देखे जा सकते हैं।

अंतरराष्ट्रीय क्षुद्रग्रह दिवस

संयुक्त राष्ट्र ने 30 जून को अंतरराष्ट्रीय क्षुद्रग्रह दिवस मनाने का फैसला किया है। यह दिन 30 जून 1908 को टंगुस्का क्षुद्रग्रह के प्रभाव की याद में है। इस दिन लोगों को क्षुद्रग्रहों के बारे में शिक्षित करने का प्रयास किया जाता है।

यह दिन लोगों को ग्रह की रक्षा के लिए काम करने के लिए प्रेरित करता है।

अंतरराष्ट्रीय क्षुद्रग्रह दिवस की शुरुआत दिसंबर 2016 में हुई थी। इसे “एस्टॉरायड डे” भी कहा जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को क्षुद्रग्रहों के खतरे के बारे में जागरूक करना है।

लेकिन, 2024 के लिए आधिकारिक थीम की घोषणा नहीं की गई है।

क्षुद्रग्रह 4.6 अरब वर्ष पुराने हैं। वे बृहस्पति के सह-कक्षीय क्षुद्रग्रह बेल्ट में घूमते हैं।

कुछ क्षुद्रग्रह 600 मील तक बड़े हो सकते हैं। अगर वे पृथ्वी पर गिरते हैं, तो बहुत सारी क्षति हो सकती है।

भारत में क्षुद्रग्रह प्रभाव के मामले कम हैं। लेकिन, अंतर्राष्ट्रीय क्षुद्रग्रह दिवस इन खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का एक प्रयास है।

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